पहलगाम में
आतंकवादियों द्वारा उठाये गए नृशंस कदम को प्रथम दृष्टया भले ही आतंकी हमला कहा
जाये, भले ही इसे
पर्यटकों पर हमला कहा जाये मगर आतंकियों द्वारा जिस तरह से कलमा पढ़वा कर, खतना देख
कर, मजहबी पहचान करने के बाद हत्याएँ की हैं वो अलग कहानी कह
रहा है. हमले से स्पष्ट है कि आतंकियों का उद्देश्य पर्यटकों को मारना नहीं था, पहलगाम में दहशत फैलाना नहीं था बल्कि उनका उद्देश्य सिर्फ हिन्दुओं की
हत्या करना था. इस हमले को पुलवामा आतंकी हमले के बाद बड़ा हमला बताकर पहलगाम की
घटना के सन्दर्भों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है.
पहलगाम की इस घटना
के सन्दर्भ तलाशने के लिए कुछ वर्ष पूर्व की स्थितियों का आकलन किया जाना भी
आवश्यक है. 2014 के बाद से जिस तरह से केन्द्र सरकार के ठोस और दृढ़ निर्णयों के
बाद से भारतीय सेना ने,
यहाँ के वीर जवानों ने अपने पूरे पराक्रम, पूरे साहस के साथ
पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की, आतंकवादियों की कमर तोड़ी है, वह अपने आपमें बेमिसाल है. इसके साथ ही अगस्त 2019 में केन्द्र सरकार ने जम्मू
कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था. इसको समाप्त करने के साथ ही राज्य को जम्मू-कश्मीर
और लद्दाख में विभाजित
करके दोनों को केन्द्रशासित राज्य घोषित कर दिया था. अनुच्छेद 370 समाप्त होने के
बाद से जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में आतंकी घटनाओं में कमी देखने को मिली. यहाँ के
सामान्य नागरिकों, विशेष
रूप से हिन्दुओं ने सहजता का अनुभव किया. विगत के कुछ वर्षों में हिन्दू जनसंख्या
द्वारा हर्षोल्लास के साथ अपने पर्व-त्योहारों का मनाया जाना आरम्भ हो गया. किसी
समय मौत की कहानी कहते, सन्नाटों में रहने वाले लाल चौक ने
भी शान से भारतीय तिरंगे को लहराते हुए देखा. यदि ऐसी अनेकानेक घटनाओं का सार
निकाला जाये, उनका आकलन करके निष्कर्ष निकाला जाये तो कहीं न
कहीं एहसास होगा कि अनुच्छेद 370 की समाप्ति से जहाँ जम्मू-कश्मीर में शांति बहाल
होने लगी थी, वहीं हिन्दुओं में भी सुरक्षा का भाव आने लगा
था.
जम्मू-कश्मीर की
ऐसी स्थिति कम से कम उनके लिए असुविधाजनक तो है ही जो यहाँ पर आतंकवाद को
फलते-फूलते देखना चाहते हैं. जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं की सहजता उन कट्टर ताकतों
के लिए असहज हो गई होगी जिनके हाथ कश्मीरी हिन्दुओं के खून से रँगे हैं. यहाँ की
शांति पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के पैरोकारों के लिए, उनके कट्टरपंथी आकाओं के लिए भी चुभने
वाली रही होगी. 2014 के बाद से जिस तरह से केन्द्र सरकार की रणनीति जम्मू-कश्मीर
क्षेत्र को लेकर स्पष्ट रही है, जिस तरह से पाकिस्तान अधिकृत
कश्मीर को लेकर, बलूचिस्तान की स्वतंत्रता को लेकर भारतीय कूटनीतिज्ञ कदम सामने
आते रहते हैं, उससे भी इस क्षेत्र के और सीमा-पार के
आतंकवादियों में निश्चित रूप से बेचैनी रही होगी. ऐसी स्थितियों के बीच में जहाँ
जम्मू-कश्मीर लगातार शांति, सुरक्षा की राह पर बढ़ता दिख रहा
है वहीं पाकिस्तान की हालत लगातार अस्थिर होती जा रही है. यह किसी से भी छिपा नहीं
है कि पाकिस्तान की, वहाँ की सरकार की अस्थिरता को रोकने का एकमात्र
कदम भारत-विरोध, हिन्दू-विरोध रहा है. यह आज से नहीं बल्कि पाकिस्तान के निर्माण
से ही उनका प्रमुख हथियार बना हुआ है. इस हथियार का प्रयोग पिछले सप्ताह इस्लामाबाद
में एक कार्यक्रम के दौरान पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने किया था.
पाकिस्तानी सेना प्रमुख द्वारा उस कार्यक्रम में बयान अनायास ही नहीं दिए गए हैं.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की उपस्थिति में पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने कश्मीर
को पाकिस्तान की गर्दन की नस बताया. इसके साथ-साथ उन्होंने परम्पराओं, रीति-रिवाजों, धर्म आदि को अलग-अलग मानते हुए
हिन्दू-मुसलमानों को भी अलग बताया. सीमा-पार से आये इस तरह के अलगाववादी बयानों के
बाद धार्मिक पहचान के आधार पर किये जाने वाला हमला न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि
चिंताजनक है.
इधर जाँच में
सामने आया है कि आतंकियों ने इस हमले की पूरी रणनीति पहले से तैयार कर रखी थी.
पहलगाम पर्यटन स्थल को चुनने के पीछे उनका उद्देश्य गैर-कश्मीरियों को निशाना
बनाना था. इसमें भी उनके
निशाने पर हिन्दू नागरिक ही थे. स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर में अशांति, आतंकवाद चाहने वालों का उद्देश्य यह दिखाना है कि अनुच्छेद 370 हटाये
जाने के बाद भी स्थितियाँ सुधरी नहीं हैं. यहाँ पर हिन्दू अभी भी असुरक्षित है. अब
जबकि इस जघन्य और सुनियोजित इस्लामिक आतंकी हत्याकांड के बाद सेना सर्च ऑपरेशन चला
रही है तो निश्चित रूप से इस घटना के साजिशकर्ता भी बेनकाब होंगे किन्तु केन्द्र
सरकार को और अधिक कठोरता से, दृढ़ता से सैन्य कार्यवाही के
लिए भारतीय सेना को अधिकाधिक अधिकार प्रदान करने होंगे. कठोर सैन्य कार्यवाई के
द्वारा आतंकवादियों के, कट्टरपंथियों के आकाओं को, सीमा-पार पाकिस्तानी आतंकवाद को नेस्तनाबूद करना चाहिए. जम्मू-कश्मीर से
विस्थापित हो चुके हिन्दुओं के मन में यह विश्वास जगाना होगा कि वे अब पूरी सुरक्षा, सहजता के साथ वापस लौट सकते हैं. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह
सन्देश देना होगा कि जम्मू-कश्मीर यहाँ के नागरिकों के लिए,
पर्यटकों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है.