26 मार्च 2024

रूस पर बड़ा आतंकी हमला

रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी ऐतिहासिक और प्रचंड बहुमत वाली जीत के बाद रूस के और अधिक शक्तिशाली रूप में उभर कर आने का विश्वास व्यक्त किया था. इस दावे के साथ ही उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध में नाटो सेनाओं के शामिल होने के अपने विश्वासपरक दावे के सापेक्ष दुनिया को विश्वयुद्ध से एक कदम दूर बताया था. पुतिन की विश्वयुद्ध की सम्भावित चेतावनी नाटो सेनाओं, पश्चिमी देशों के लिए थी. इन सबके पीछे रूस की सशक्त सेना, पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था, सजग सुरक्षा एजेंसियों का होना माना जा रहा था मगर चंद आतंकियों ने रूस के, पुतिन के इस विश्वास को हिला डाला. चार आतंकियों ने मॉस्को के नज़दीक स्थित क्रोकस कॉन्सर्ट हॉल में घुसकर सोवियत काल के रॉक बैंड ग्रुप पिकनिक के एक म्यूजिक कॉन्सर्ट के दौरान गोलियों की बौछार कर दी थी. एके 47 से की गई अंधाधुंध गोलीबारी में सैकड़ों लोगों की जान गई और घायल हुए.

 



जहाँ इस हमले की जिम्मेवारी एक तरफ इस्लामिक स्टेट ख़ोरासान प्रान्त (ISIS-K) ने ली वहीं दूसरी तरफ पुतिन इस आतंकी हमले को यूक्रेन की साजिश बता रहे हैं. पुतिन के इस संदेह का कारण आतंकियों का यूक्रेनी सीमा से यूक्रेन में प्रवेश करने की कोशिश करना रहा है. एक तरफ रूसी राष्ट्रपति इस्लामिक आतंकी संगठन को, यूक्रेन को इसके लिए जिम्मेवार ठहरा रहे हैं, दूसरी तरफ जैसै-जैसे इस आतंकी हमले की जाँच आगे बड़ रही है वैसे-वैसे चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं. इस आतंकी हमले में संलिप्त चारों आतंकियों सहित कुल ग्यारह लोगों को पकड़ने का दावा रूसी सुरक्षा एजेंसियों ने किया है. इन सभी गिरफ्तार व्यक्तियों का सम्बन्ध अफगानिस्तान में सक्रिय इस्लामिक स्टेट की खोरासान शाखा से बताया गया है. इससे इस हमले में तुर्किये का सम्बन्ध होना सामने आया है. रूस की संघीय सुरक्षा एजेंसी (FSB) ने दावा किया है कि पहले भी मॉस्को में इसी तरह के दो आतंकी हमले की कोशिशों को नाकाम किया गया है. इस हमले में तुर्किये कनेक्शन सामने के बाद सवाल खड़ा हो गया है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन को अपना दोस्त बताने वाले तुर्किये राष्ट्रपति एर्दोगन क्या अब धोखा दे रहे हैं?

 

रूस में हुए इस आतंकी हमले में अलग-अलग दृष्टिकोण से अलग-अलग पेंच और सम्बन्ध दिखाई देते हैं. हमले की जिम्मेवारी सबसे पहले इस्लामिक आतंकी संगठन ने ली थी. रूसी सुरक्षा एजेंसियों की जाँच से तुर्किये कनेक्शन दिखाई दिया. रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इस हमले को यूक्रेन की साजिश बताया. इस संदेह के चलते ही यूक्रेन को पुतिन के गुस्से का खामियाजा उठाना पड़ा. रूस ने यूक्रेन के बाईस से ज्यादा शहरों में हमले किए. यूक्रेन के इस हमले में शामिल होने के दावे का असर अमेरिका पर पड़ता दिख रहा है. पुतिन के नजदीकी विश्वस्त अफसरों को संदेह है कि अमेरिका को इस तरह का आतंकी हमला होने की जानकारी थी लेकिन उसने रूस को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी. रूसी अधिकारियों द्वारा इस तरह का संदेह उठाये जाने का एक कारण अमेरिका द्वारा सात मार्च का वह अलर्ट है जिसमें अमेरिकी दूतावास ने अपने नागरिकों से कहा था कि वे मॉस्को में होने वाली बड़ी सभाओं और कार्यक्रमों से दूर रहें. इस अलर्ट के बीस दिनों के भीतर ही आतंकी हमला होने का सीधा मतलब यही लगाया जा रहा है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के पास आतंकी हमले को लेकर जानकारी थी.  

 

आतंकी हमले के तार कहाँ-कहाँ, किस-किस से जुड़े हैं ये तो आने वाले समय में होने वाली जाँच से पता चलता रहेगा मगर अब अंदेशा रूस के हमलावर होने का है. ऐसा होता नजर आने भी लगा है. सुरक्षा एजेंसियों ने देश भर में सार्वजनिक कार्यक्रमों को रद्द कर दिया है. सभी जगहों पर सुरक्षा व्यवस्था को और कड़ा कर दिया है. यूक्रेन पर हमले बढ़ गए हैं, देखा जाये तो ये बढ़े हुए हमले कहीं का कहीं अमेरिका और नाटो सेनाओं के विरुद्ध क्रोध का संकेत हैं. दरअसल वर्ष 2002 में चेचन अलगाववादियों द्वारा नॉर्ड-ओस्ट थियेटर में बंधक बनाये जाने के बाद से यह सबसे बड़ा आतंकी हमला है. उस हमले में एक सौ सत्तर के आसपास लोग मारे गए थे. रूस अभी तक उस आतंकी हमले को भुला नहीं पाया है. इसके अलावा इसमें कोई संदेह नहीं कि पुतिन अपने नेतृत्व में रूस से इस्लामिक, कट्टरपंथी आतंकवाद का एक तरह से सफाया कर दिया है. ऐसे में पुतिन की प्रचंड और ऐतिहासिक बहुमत वाली जीत ने उनके विरोधियों में नाराजगी और निराशा पैदा कर दी.

 

यह आतंकी हमला इसी निराशा और हताशा का परिणाम हो या न हो किन्तु यह हमला पुतिन के विश्वास और स्वाभिमान पर अवश्य है. इस आतंकी हमले के बाद रूस आक्रामक मुद्रा में है और अमेरिका द्वारा यूक्रेन को बेगुनाह बताते हुए क्लीन चिट दी जा रही है. विश्व की इन दो महाशक्तियों द्वारा उठाये जा रहे कदमों, बयानों का अंतिम निष्कर्ष क्या निकलेगा ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है किन्तु इस आतंकी घटना ने एक तरह का वैश्विक भय अवश्य पैदा कर दिया है. इस आतंकी हमले ने विश्व की दो महाशक्तियों के बीच खतरनाक संघर्ष के शुरू होने का बीज बो दिया है. 






 

22 मार्च 2024

राजनैतिक गलियारे के व्यवस्था परिवर्तक

आखिरकार कई-कई समन को अस्वीकार करने वाले अरविन्द केजरीवाल को ईडी ने अपने चंगुल में ले ही लिया. आबकारी नीति मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर लिया गया. आम आदमी पार्टी के इससे पहले कई जनप्रतिनिधि जेल में हैं. मनीष सिसौदिया, संजय सिंह, सतेन्द्र जैन आदि पहले से गिरफ्तार होकर जेल में हैं. अब अरविन्द केजरीवाल गिरफ्तार कर लिए गए हैं और छह दिन की रिमांड पर हैं. संभव है कि वे भी अपने साथियों के बीच जल्द ही दिखाई देंगे. 


अरविन्द केजरीवाल की गिरफ़्तारी ने भी एक तरह का अलग रिकॉर्ड बना दिया है. देश में यह पहला मामला है जबकि किसी मुख्यमंत्री को उसके पद पर रहते हुए गिरफ्तार किया गया है. यहाँ उनकी गिरफ़्तारी से सम्बंधित सवाल-जवाब अथवा विमर्श की तरफ इस पोस्ट को कतई नहीं ले जाना है. आज इस विषय पर पोस्ट लिखने का सन्दर्भ महज इतना है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध शुरू हुए आन्दोलन से, लोकपाल को लाने के संकल्प के साथ जन्मे एक दल ने और उसके नेताओं ने आम आदमी के विश्वास को न केवल तोडा है बल्कि घनघोर तरीके से चकनाचूर भी कर दिया है.




अन्ना आन्दोलन के दौरान जिस तरह से इन नेताओं द्वारा बड़ी-बड़ी बातें की गईं, खुद को ईमानदारी का एकमात्र प्रतिनिधि बताया गया, दूसरे दलों के नेताओं के सैकड़ों-सैकड़ों कागजों में भ्रष्टाचार के सबूत दिखाए गए, खुद को राजनीति की, सत्ता की चकाचौंध से बाहर रखने के जुमले फेंके गए, बच्चों तक की कसमें खाई गईं और अंततः सबके सब ही एक ही रंग में रँगे नजर आये. दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ खुले मंचों से लहराए जाने वाले कागजात सत्ता में आने के बाद न जाने कहाँ गायब हो गए? जिस कांग्रेस के खिलाफ पूरा आन्दोलन चलाया गया, उसी के साथ मिलकर सरकार बनाई गई. इसके बाद भी इन सबका खुद को व्यवस्था बदलने वाला, नई तरह की राजनीति करने का ढोल पीटना बंद नहीं किया गया.


जो सारे कार्य इन लोगों ने अपने लिए निषिद्ध मान रखे थे, कह रखे थे, वे सारे के सारे अपनाए गए. आम जनमानस को इससे समस्या पैदा होने वाली नहीं थी और न है. आखिर राजनीति के गलियारों में यह कोई नई या अनोखी बात नहीं है. कोई भी दल हो आज बात भले सिद्धांतों की, शुचिता की, ईमानदारी की करता हो मगर काम स्वार्थपरक ही करेगा, सत्तालोलुप रहेगा. आम आदमी पार्टी के कृत्यों से, इनके नेताओं के रंग बदलने से नकारात्मक प्रभाव उन छोटे-छोटे सामाजिक संगठनों पर पड़ा जो वाकई में छोटे से क्षेत्र में ईमानदारी से, कुशलता के साथ कार्य कर रहे थे. आम आदमी पार्टी के कृत्यों से सबसे निचले स्तर के व्यक्ति की ईमानदारी, शुचिता पर, उसके कार्यों पर संदेह किया जाने लगा है. आम जनमानस में एक धारणा गहरे तक बैठ गई कि किसी भी रूप में समाज से भ्रष्टाचार को दूर नहीं किया जा सकता है. कोई कितना भी आन्दोलन करे, कसमें खाए, खुद को ईमानदार बताता घूमे लेकिन यह सब सिर्फ और सिर्फ सत्ता प्राप्ति के लिए, स्वार्थ-पूर्ति के लिए ही किया जाता है.


आन्दोलन से लेकर अद्यतन इनके कृत्यों को देखने के बाद बचपन में किसी कक्षा में पढ़ी डाकू खड्ग सिंह और बाबा भारती की कहानी याद आ गई. 





 

19 मार्च 2024

पुतिन की विजय और विश्वयुद्ध की चेतावनी

रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने तीसरे व‍िश्‍वयुद्ध को लेकर एक बार फिर बड़ी चेतावनी दी है. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान यदि नाटो की सेना और रूसी सेना में संघर्ष हुआ तो दुनिया तीसरे विश्‍वयुद्ध से एक कदम दूर होगी. इस तरह का बयान उस समय आया है जबकि पुतिन राष्ट्रपति चुनाव को ऐतिहासिक बहुमत से जीत कर अगले छह वर्षों के लिए रूस के राष्ट्रपति बन गए हैं. उनको राष्ट्रपति के चुनाव में 87.29 प्रतिशत मत मिले हैं, जो रूस के सोवियत इतिहास के बाद का सबसे बड़ा परिणाम है. इन चुनावों में पुतिन को मिली जीत ने उनके पाँचवें कार्यकाल का मार्ग प्रशस्त किया. गौरतलब है कि पुतिन 1999 से राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के रूप में रूस का नेतृत्व करते आ रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान मिली विजय वहाँ के नागरिकों का उनके प्रति विश्वास और उम्मीद का सूचक है. ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि पिछले तीन चुनावों में उनको प्राप्त मतों का प्रतिशत लगातार बढ़ता ही रहा है. 2012 में उनको 63.6 प्रतिशत, 2018 में 76.7 प्रतिशत और 2024 में हुए चुनावों में 87.29 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं.

 



पुतिन की इस विजय को कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण इस कारण से माना जा रहा है क्योंकि उनके द्वारा अपने नागरिकों से लगातार वादा किया गया कि वे पश्चिमी देशों द्वारा रूस के वैभव को बर्बाद करने की, रूसी अर्थव्यवस्था को नकारात्मक दिशा में पहुँचाने की साजिश को सफल नहीं होने देंगे. उन्होंने ऐसा करके भी दिखाया है. यूरोपियन देशों सहित अमेरिका द्वारा किये जाने वाले विरोध और प्रतिबंधों के बाद भी रूसी अर्थव्यवस्था पर पुतिन ने संकट नहीं आने दिया. विगत लम्बे समय से यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध से उत्पन्न माहौल को भी पुतिन के खिलाफ ले जाने के सारे प्रयास असफल ही रहे हैं. इसके उलट इन दिनों में पुतिन की रेटिंग में उछाल भी आया है. यूक्रेन पर हमला किये जाने के समय पुतिन की रेटिंग 71 मानी जा रही थी जो अब बढ़कर 86 हो गई है. रूसी राष्ट्रपति भी इस तथ्य से भली-भांति परिचित हैं कि पश्चिमी देश लगातार रूस के खिलाफ साजिश करते रहे हैं. इसी कारण से उन्होंने अपनी विराट विजय के पश्चात् सबसे पहले पश्चिमी देशों को आगाह करते हुए विश्वयुद्ध जैसी स्थिति की चेतावनी दे डाली.

 

देखा जाये तो रूस-यूक्रेन युद्ध ने 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट के बाद पश्चिम के साथ रूस के सम्बन्धों में सबसे गहरा संकट पैदा कर दिया है. उस समय अमेरिका के नजदीक क्यूबा में मिसाइल तैनाती के एक मुद्दे पर तत्कालीन सोवियत संघ और अमेरिका खुलकर आमने-सामने आ गए थे. यद्यपि पुतिन ने विश्वयुद्ध के प्रति पश्चिमी देशों को चेताया तो है तथापि उन्होंने यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में परमाणु बम की जरूरत को नकारा.

तमाम रक्षा व‍िश्‍लेषकों का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों और रूस के बीच तनाव अपने चरम पर पहुँच गया है. इस तनाव का एक कारण यूक्रेन में नाटो सेनाओं की उपस्थिति की आशंका है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन पूरे विश्वास के साथ इस बात को मानते हैं कि नाटो के सैनिक और विशेषज्ञ यूक्रेन में उपस्थित हैं, जो रूस के साथ युद्ध में उनको सहायता, सलाह दे रहे हैं. ऐसी स्थिति को मानने के साथ-साथ विगत दिनों फ्रांस के राष्‍ट्रपति मैक्रां ने एक बयान में संकेत दिया कि वे भव‍िष्‍य में यूक्रेन में नाटो की जमीनी सेना की तैनाती की सम्भावना से इंकार नहीं कर सकते हैं. इस बयान से यूक्रेन में नाटो सैनिकों के होने के पुतिन के दावे को बल मिलता है. यद्यपि मैक्रां के बयान के बाद कई पश्चिमी देशों ने अपने को इससे दूर बताया है तथापि फ्रांसीसी राष्‍ट्रपति को पूर्वी यूरोप के कई देशों का साथ भी मिला. पुतिन का विश्वयुद्ध की आशंका वाला बयान फ्रांसीसी राष्ट्रपति के बयान की प्रतिक्रिया माना जा रहा है.

 

पुतिन के विश्वयुद्ध सम्बन्धी बयान को भले ही फ्रांसीसी राष्ट्रपति के बयान की प्रतिक्रिया माना जाये किन्तु वर्तमान विजय के पश्चात् यह तो स्पष्ट है कि रूस और पुतिन पहले से ज्यादा सशक्त, मजबूत बनकर उभरे हैं. उनका यह उभार पश्चिमी देशों की नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त है. विगत लगभग तीन वर्षों से चले आ रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका खुलकर यूक्रेन का साथ देता दिख रहा है. रूस एक तरह से यूक्रेन के साथ-साथ अमेरिका, नाटो सेनाओं के साथ युद्ध करता आ रहा है. इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि रूस विश्व के सर्वाधिक परमाणु हथियारों और सुपरसोनिक मिसाइलों वाला देश है और पुतिन उसी देश के सर्वशक्तिमान नेता हैं. ऐसे में इस विजय के पश्चात् यह युद्ध रुकने अथवा शंतिपरक पहल के रास्ते पर जाने बजाय और तीव्र हो सकता है. अब पुतिन खुद को कमजोर सिद्ध करने के स्थान पर वैश्विक रूप से और अधिक ताकतवर महाशक्ति के रूप में उभरने का रास्ता अपना सकते हैं. ऐसे में सम्भव है कि विश्वयुद्ध की ये चेतवानी पश्चिमी देशों तक अपनी विजय की हनक को पहुँचाने का कदम हो. फिलहाल दुनिया भले ही तीसरे विश्वयुद्ध का सामना न करे किन्तु यदि जल्द ही शांति का माहौल नहीं बनता है तो दुनिया निश्चित ही विश्वयुद्ध जैसे हालातों का सामना तो कर ही सकती है. 





 

17 मार्च 2024

पिताजी के जैसा बनने की कोशिश

उन्नीस साल का सफ़र, जिसमें सब लोग तो साथ थे बस एक आप ही न थे. आपके जाने के बाद बहुत कोशिश की जिम्मेवार बनने की, परिवार को साथ लेकर चलने की. आपके जाने वाली तारीख से लेकर आज तक की तारीख की अपनी यात्रा पर नजर डालते हैं तो लगता है कि हर स्थिति में असफल ही हुए हैं. आपके जैसा स्वभाव नहीं ही पा सके, यदि उसका शतांश भी पाया होता तो मिंटू को नहीं खोते.

 

कोशिश तो हर पल करते हैं आपके जैसे बनने की मगर आज तक नहीं बन सके. बहुत अच्छे से याद है आपके जाने के एक महीने बाद घर के लिए बाजार से लौटते समय पहली बार ककड़ी खरीद कर लाये थे. उस समय और घर आने के दौरान बहुत बार आँखें नम हुईं. समय को कुछ और ही मंजूर था, उसी दिन हम शाम को ट्रेन एक्सीडेंट का शिकार हो गए. साल भर तक वे सभी पारिवारिक जिम्मेवारियाँ, जो हमें उठानी थीं उनको पिंटू-मिंटू ने उठाया.

 

पता नहीं समय ख़राब रहा या फिर कुछ और ही. धीरे-धीरे जब लगा कि सबकुछ सही होने जा रहा है तो मिंटू हम सबको छोड़ आपके पास चल दिया. ये भी एक तरह से हमारी ही गैर-जिम्मेवारी है, इसे हम स्वीकारते हैं. सबसे बड़े भाई होने का दम भरते रहे मगर एक छोटे भाई की समस्या को,उसकी मनोदशा को न समझ सके.

 

पता नहीं समय क्या-क्या दिखाएगा? कोशिश यही है कि जो रास्ता आपने दिखाया है, जो शिक्षा आपने दी है उसका अनुपालन कर सकें. हार-जीत के संघर्च के बीच से खुद को निकाल कर आपकी नज़रों में खुद को साबित कर सकें. कोशिश यही है कि पारिवारिक जिम्मेवारियों को निभाने में आपके जैसा बन सकें. 






 

12 मार्च 2024

अपने ही नागरिकों को नागरिकता देने वाला कानून

चार वर्ष से अधिक की प्रतीक्षा के पश्चात् अंततः नागरिक संशोधन अधिनियम को भारत के राजपत्र में अधिसूचित कर दिया गया. दिसम्बर 2019 में यह अधिनियम संसद के दोनों सदनों में पारित हुआ था. अब इसे अधिसूचित किये जाने के बाद इस अधिनियम के क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त हो गया है. इस कानून के लागू हो जाने से भारत के तीन पड़ोसी देशों-पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी. संसद के दोनों सदनों से पारित इस अधिनियम के द्वारा अफगानिस्तान , बांग्लादेश और पाकिस्तान से प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता का त्वरित मार्ग प्रदान करके के लिए नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया था. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता सम्बन्धी नियमों में परिवर्तन किये गए.

 



देश की स्वतंत्रता के बाद जब 26 जनवरी 1950 को यहाँ का संविधान लागू हुआ तो भारत में जन्म लेने वाले नागरिकों को यहाँ की नागरिकता स्वतः ही मिल गई थी. इसके पश्चात् 1955 में नागरिकता कानून बनाकर उन सभी नागरिकों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई जो पूर्व-रियासतों के नागरिक रहे थे. इस कानून में समय-समय पर परिवर्तन भी किये जाते रहे. ऐसा करने के पीछे कारण गोवा, दमन-दीव, पुडुचेरी की भौगौलिक स्थितियों में आये परिवर्तन रहे थे. दरअसल पाकिस्तान और बांग्लादेश से भूमि विवाद सुलझाने के कारण से इन क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों को भारत की नागरिकता देने के लिए ये संशोधन किये गए थे. भूमि विवाद के साथ-साथ इन पड़ोसी देशों में धार्मिक विवाद भी लगातार देखने को मिल रहे थे. इससे शायद ही कोई इंकार करे कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में वहाँ के अल्पसंख्यक नागरिकों-हिन्दू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी आदि को लगातार अमानवीय व्यवहार, उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा, संरक्षण के लिए नेहरू-लियाकत समझौता भी इसी कारण से धरातल पर लाया गया था. कालांतर में उसका अनुपालन असल हो गया.

 

ये एक विचारणीय स्थिति है कि देश के विभाजन के पूर्व इन तीनों पड़ोसी देशों के ये अल्पसंख्यक नागरिक इसी भारत देश के नागरिक थे, यही इनकी भी मातृभूमि थी. ऐसी स्थिति जबकि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए किये गए समझौते का अनुपालन करना संभव नहीं हो रहा था तो भारत की संवैधानिक जिम्मेवारी बनती थी कि वह इन प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को संरक्षण प्रदान करे. लगातार मिलते उत्पीड़न, शोषण के कारण इन देशों के अल्पसंख्यक नागरिक लगातार अपनी मातृभूमि-भारत की तरफ एक आशा की दृष्टि के साथ दौड़ पड़ते हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के ऐसे हजारों नागरिक अवैध प्रवासी के रूप में भारत में रह रहे हैं. मानवीयता के आधार पर भले ही उनकी सहायता की जा सके मगर देश की कोई भी सरकार, राज्यों की सरकारें चाह कर भी संवैधानिक रूप से उनकी सहायता नहीं कर पा रही थीं. ये तीनों देश भी अपने देश में अपने अल्पसंख्यक नागरिकों की सहायता करने में असमर्थ ही नजर आ रहे थे. ऐसे में भारत सरकार ने अपना दायित्व समझते हुए नागरिकता संशोधन अधिनियम को दोनों सदनों में पारित करवाया और उसकी विस्तीर्ण नियमावली को अधिसूचित कर दिया. यह अधिनियम इन तीनों देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को देश की नागरिकता लेने की सुविधा प्रदान करता है किन्तु वह इन्हीं तीनों पडोसी देशों के मुस्लिम नागरिकों को भारत की नागरिकता लेने की सुविधा प्रदान नहीं करता है.

 

देखा जाये तो भारत सरकार की तरफ से यह एक महत्त्वपूर्ण कदम का उठाया जाना है. इस अधिनियम से देश के किसी भी अल्पसंख्यक और मुस्लिम की नागरिकता पर किसी तरह का संकट नहीं खड़ा होता है, जैसा कि पूर्व में अनेक विपक्षी राजनैतिक दलों द्वारा कहा जाता रहा है. अनेक राजनैतिक दलों के साथ-साथ अनेक मुस्लिम संगठनों ने इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् इसका जबरदस्त विरोध किया था. शाहीन बाग़ में एक लम्बी अवधि तक चला विरोध प्रदर्शन इसका उदाहरण है. यहाँ स्पष्ट रूप से समझने वाली बात है कि यह अधिनियम देश के किसी भी व्यक्ति, वह चाहे किसी भी धर्म का हो, की नागरिकता को खतरे में नहीं डालता है न ही उसका हनन करता है. यह अधिनियम उन वंचितों को, धार्मिक अल्पसंख्यकों को कानूनी अधिकार देता है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में प्रताड़ित होकर भारत में शरणार्थी की स्थिति में हैं. नागरिकता अधिनियम में नागरिकता के प्रावधान के सन्दर्भ में आवेदक को पिछले 12 महीनों के दौरान और पिछले 14 वर्षों में से आखिरी वर्ष में 11 महीने भारत में रहना चाहिए. कानून में हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई जो तीन देशों-अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से सम्बंधित हैं, उनके लिए 11 वर्ष की जगह 6 वर्ष तक का समय निर्धारित किया गया है. कानून में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि किसी नियम का उल्लंघन किया जाता है तो ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्डधारकों का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है. 


भारत सरकार द्वारा कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में अपने ही उन नागरिकों को संरक्षण, सुरक्षा प्रदान किये जाने का प्रावधान किया है जो आज़ादी के समय तत्कालीन स्थितियों के चलते अनचाहे ही किसी दूसरे देश के नागरिक बन गए थे और उन देशों में वे धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक भी थे, प्रताड़ित भी थे. इस तरह के कदम के लिए देशव्यापी समर्थन, सहयोग मिलना चाहिए था मगर कतिपय राजनैतिक स्वार्थ के चलते इस अधिनियम का अतार्किक विरोध किया गया. अब जबकि इस अधिनियम को अधिसूचित कर दिया गया है, राज्यों का अनापेक्षित हस्तक्षेप न रहे इसके लिए केन्द्रीय पोर्टल की व्यवस्था की गई है, तब सभी को अपने ही पूर्व-नागरिकों का स्वागत, सम्मान करना चाहिए जो अभी तक अपने ही देश में शरणार्थी की तरह रहने को विवश थे.