रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
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बचपने के सुख से दूर बचपन
बोर्ड परीक्षाओं
के साथ-साथ घरेलू परीक्षाओं की समाप्ति के बाद भी बच्चे न तो उत्साहित से दिख रहे
हैं और न ही पढ़ाई से मुक्त नजर आ रहे हैं. लगभग सभी बच्चों के चेहरे पर एक तरह का
तनाव सा दिखाई पड़ रहा है. इनको देखकर लग ही नहीं रहा है कि इन्हीं बच्चों ने अभी
कुछ दिन पहले खूब मेहनत करके परीक्षाएँ दी है. ये सारे के सारे बच्चे आज भी किसी
परीक्षा को देते से नजर आते हैं. ये सच भी है, क्योंकि एक समय था जबकि परीक्षाएँ समाप्त होने के बाद कुछ
दिनों तक सभी बच्चे दबाव मुक्त होकर अपनी छुट्टियों को बिताया करते थे. आजकल देखने
में आ रहा है कि परीक्षा के दबाव से निकलते ही उनके ऊपर परीक्षा परिणाम का दबाव
हावी होने लगता है. अंक कैसे आयेंगे? कौन सा ग्रेड मिलेगा?
प्रवीणता सूची में नाम आएगा या नहीं? ऐसे एक-दो नहीं सैकड़ों
सवाल उनके मन-मष्तिष्क पर दबाव बनाने लगते हैं. इस दबाव के साथ-साथ एक दूसरी तरह
का दबाव भी अपनी गिरफ्त बनाने की कोशिश करता है. बच्चों के ऊपर जहाँ परीक्षा
परिणाम का दबाव उनके सामाजिक, पारिवारिक और शैक्षणिक वातावरण
के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है वहाँ एक अन्य प्रकार का दबाव उन पर व्यावसायिक
स्थिति के चलते बनाया जाने लगता है. अभी परीक्षा परिणाम निकला नहीं है मगर शिक्षण
संस्थानों द्वारा अगले सत्र में प्रवेश लेने के लिए युद्ध-स्तर पर तैयारियाँ चलने
लगी हैं. विज्ञापनों, व्यक्तिगत संपर्कों, फोन कॉल्स के द्वारा अभिभावकों पर डोरे डालने का काम शुरू हो गया है.
देखा जाये तो
समस्या न तो परीक्षा है,
न परीक्षाफल और न ही अगली कक्षा में प्रवेश की रस्साकशी, असल
समस्या है बच्चों के हिस्से में आने वाली गर्मियों की छुट्टियों पर डाका डालने की.
सुनने, पढ़ने में ये भले ही अजीब सा,
अलोकतांत्रिक सा लगे मगर सच यही है कि अब बच्चों के हिस्से में वे गर्मियों की
छुट्टियाँ नहीं आती हैं, जिन्हें वास्तविक रूप में छुट्टियाँ
कहा जाता है. परीक्षा परिणाम अभी क्या होगा, इससे किसी तरह
का सरोकार रखे बिना शिक्षण संस्थानों द्वारा बच्चों का प्रवेश अगली कक्षा में कर
लिया जाता है. नए शैक्षिक सत्र के नाम पर चंद दिनों चलाई गई कक्षाओं के बाद बोलचाल
में स्वीकारी जाने वाली गर्मियों की छुट्टियों के लिए बच्चों के बस्तों में इतना
सारा अनावश्यक काम गृहकार्य के नाम पर ठूँस दिया जाता है कि न केवल बच्चा बल्कि
उसके माता-पिता तक भूल जाते हैं कि वे गर्मियों की छुट्टियों का आनंद उठा रहे हैं.
मई-जून माह में
होने वाली गर्मियों की छुट्टियाँ विद्यालयों से दूर रहने वाले दिन अकेले नहीं हुआ
करते हैं बल्कि इन छुट्टियों के द्वारा बच्चों में अपने परिजनों से मिलने, अपने आसपास के वातावरण को
देखने-समझने, देशाटन करने, बिना किसी
तरह का मानसिक बोझ लेकर साथियों संग समन्वय-सामंजस्य आदि की समझ विकसित हुआ करती
है. अब गृहकार्य के नाम पर जिस तरह का मानसिक और किताबी बोझ बच्चों पर लाद दिया
जाता है, उससे बच्चे गर्मियों की छुट्टियों का आनंद उठाना
भूल ही गए हैं. एक पल को रुक कर सोचिए और महसूस करिए कि क्या आज के बच्चे गर्मियों
की छुट्टियों में आम के बगीचों का आनंद ले पा रहे हैं? क्या
वे ग्रामीण अंचलों में रह रहे अपने बाबा-दादी, नाना-नानी अथवा अन्य रिश्तेदारों के
पास जा पा रहे हैं? रातों को खुले आसमान के नीचे
चाँद-सितारों को निहारते हुए किस्से-कहानियों के कल्पना-लोक में विचरण करने जैसा
सुख क्या आज के बच्चे ले पा रहे हैं? क्या आज के बच्चों
द्वारा निष्फिक्र रूप में तालाब, नहर, बम्बा आदि में तैरने
का मजा लिया जा रहा है? क्या ये बच्चे इन छुट्टियों में
खेतों-खलिहानों को वास्तविक रूप में आत्मसात कर पा रहे हैं? ऐसी
स्थिति के चलते आज के बच्चे नैसर्गिक वातावरण से बहुत दूर होते चले जा रहे हैं. यह
वातावरण प्राकृतिक ही नहीं बल्कि पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि भी है.
ऐसा नहीं कि
गर्मियों की छुट्टियों में मिलने वाला गृहकार्य आवश्यक नहीं, इसके द्वारा भी
बच्चों का मानसिक और शैक्षणिक विकास होता है. छुट्टियों के दिनों में दिए गए
प्रोजेक्ट के द्वारा उनके भीतर कुछ न कुछ नया सीखने की ललक पैदा होती है, जिज्ञासा जागती है. बावजूद इसके
क्या आज मिलने वाले गृहकार्य के द्वारा ऐसा हो रहा है?
विद्यालयों से गृहकार्य के नाम पर पाठ्यक्रमों की पूर्ति करवाई जाने लगी है.
लम्बे-लम्बे लिखित किताबी कार्य देकर बच्चों को चौबीस घंटे किताबों में ही घुसे
रहने को मजबूर किया जा रहा है. गृहकार्य के द्वारा अब न बच्चों के सामान्य ज्ञान
को बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है, न उनकी हस्तलिपि को
सुधारने पर जोर दिया जा रहा है, न ही कला-संगीत आदि किसी शौक
को विकसित करने की पहल की जा रही है. अधिक से अधिक अंक लाने की अंधी दौड़, प्रवीणता सूची में सबसे ऊपर आने की कशमकश, अधिक से
अधिक किताबी ज्ञान को दिमाग में भर लेने की कवायद के द्वारा बच्चों का बचपन तो
पहले ही छीन लिया गया है, अब गर्मियों की छुट्टियों पर
अप्रत्यक्ष डाका डालकर उनको सामाजिकता, पारिवारिकता, सांस्कृतिकता आदि से भी दूर किया जा रहा है.
26 मार्च 2024
रूस पर बड़ा आतंकी हमला
रूसी राष्ट्रपति
पुतिन ने अपनी ऐतिहासिक और प्रचंड बहुमत वाली जीत के बाद रूस के और अधिक शक्तिशाली
रूप में उभर कर आने का विश्वास व्यक्त किया था. इस दावे के साथ ही उन्होंने
रूस-यूक्रेन युद्ध में नाटो सेनाओं के शामिल होने के अपने विश्वासपरक दावे के
सापेक्ष दुनिया को विश्वयुद्ध से एक कदम दूर बताया था. पुतिन की विश्वयुद्ध की
सम्भावित चेतावनी नाटो सेनाओं, पश्चिमी देशों के लिए थी. इन सबके पीछे रूस की सशक्त सेना, पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था, सजग सुरक्षा एजेंसियों का
होना माना जा रहा था मगर चंद आतंकियों ने रूस के, पुतिन के
इस विश्वास को हिला डाला. चार आतंकियों ने मॉस्को के नज़दीक स्थित क्रोकस कॉन्सर्ट
हॉल में घुसकर सोवियत काल के रॉक बैंड ग्रुप पिकनिक के एक म्यूजिक कॉन्सर्ट के दौरान गोलियों की
बौछार कर दी थी. एके 47 से की गई अंधाधुंध गोलीबारी में सैकड़ों लोगों की जान गई और
घायल हुए.
जहाँ इस हमले की
जिम्मेवारी एक तरफ इस्लामिक स्टेट ख़ोरासान प्रान्त (ISIS-K) ने ली वहीं दूसरी तरफ पुतिन इस आतंकी हमले
को यूक्रेन की साजिश बता रहे हैं. पुतिन के इस संदेह का कारण आतंकियों का यूक्रेनी
सीमा से यूक्रेन में प्रवेश करने की कोशिश करना रहा है. एक तरफ रूसी राष्ट्रपति
इस्लामिक आतंकी संगठन को, यूक्रेन को इसके लिए जिम्मेवार ठहरा रहे हैं, दूसरी
तरफ जैसै-जैसे इस आतंकी हमले की जाँच आगे बड़ रही है वैसे-वैसे चौंकाने वाले खुलासे हो
रहे हैं. इस आतंकी हमले में संलिप्त चारों आतंकियों सहित कुल ग्यारह लोगों को पकड़ने
का दावा रूसी सुरक्षा एजेंसियों ने किया है. इन सभी गिरफ्तार व्यक्तियों का
सम्बन्ध अफगानिस्तान में सक्रिय इस्लामिक स्टेट की खोरासान शाखा से बताया गया है.
इससे इस हमले में तुर्किये का सम्बन्ध होना सामने आया है. रूस की संघीय सुरक्षा एजेंसी
(FSB) ने दावा किया है कि पहले
भी मॉस्को में इसी तरह के दो आतंकी हमले की कोशिशों को नाकाम किया गया है. इस हमले
में तुर्किये कनेक्शन सामने के बाद सवाल खड़ा हो गया है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन को
अपना दोस्त बताने वाले तुर्किये राष्ट्रपति एर्दोगन क्या अब धोखा दे रहे हैं?
रूस में हुए इस
आतंकी हमले में अलग-अलग दृष्टिकोण से अलग-अलग पेंच और सम्बन्ध दिखाई देते हैं. हमले
की जिम्मेवारी सबसे पहले इस्लामिक आतंकी संगठन ने ली थी. रूसी सुरक्षा एजेंसियों
की जाँच से तुर्किये कनेक्शन दिखाई दिया. रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इस हमले को
यूक्रेन की साजिश बताया. इस संदेह के चलते ही यूक्रेन को पुतिन के गुस्से का
खामियाजा उठाना पड़ा. रूस ने यूक्रेन के बाईस से ज्यादा शहरों में हमले किए. यूक्रेन
के इस हमले में शामिल होने के दावे का असर अमेरिका पर पड़ता दिख रहा है. पुतिन के नजदीकी
विश्वस्त अफसरों को संदेह है कि अमेरिका को इस तरह का आतंकी हमला होने की जानकारी थी लेकिन उसने रूस को इस
बारे में कोई जानकारी नहीं दी. रूसी अधिकारियों द्वारा इस तरह का संदेह उठाये जाने
का एक कारण अमेरिका द्वारा सात मार्च का वह अलर्ट है जिसमें अमेरिकी दूतावास ने अपने
नागरिकों से कहा था कि वे मॉस्को में होने वाली बड़ी सभाओं और कार्यक्रमों से दूर रहें.
इस अलर्ट के बीस दिनों के भीतर ही आतंकी हमला होने का सीधा मतलब यही लगाया जा रहा
है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के पास आतंकी हमले को लेकर जानकारी थी.
आतंकी हमले के तार
कहाँ-कहाँ, किस-किस से
जुड़े हैं ये तो आने वाले समय में होने वाली जाँच से पता चलता रहेगा मगर अब अंदेशा
रूस के हमलावर होने का है. ऐसा होता नजर आने भी लगा है. सुरक्षा एजेंसियों ने देश
भर में सार्वजनिक कार्यक्रमों को रद्द कर दिया है. सभी जगहों पर सुरक्षा व्यवस्था
को और कड़ा कर दिया है. यूक्रेन पर हमले बढ़ गए हैं, देखा जाये
तो ये बढ़े हुए हमले कहीं का कहीं अमेरिका और नाटो सेनाओं के विरुद्ध क्रोध का
संकेत हैं. दरअसल वर्ष 2002 में चेचन अलगाववादियों द्वारा नॉर्ड-ओस्ट थियेटर में
बंधक बनाये जाने के बाद से यह सबसे बड़ा आतंकी हमला है. उस हमले में एक सौ सत्तर के
आसपास लोग मारे गए थे. रूस अभी तक उस आतंकी हमले को भुला नहीं पाया है. इसके अलावा
इसमें कोई संदेह नहीं कि पुतिन अपने नेतृत्व में रूस से इस्लामिक, कट्टरपंथी आतंकवाद का एक तरह से सफाया कर दिया है. ऐसे में पुतिन की
प्रचंड और ऐतिहासिक बहुमत वाली जीत ने उनके विरोधियों में नाराजगी और निराशा पैदा
कर दी.
यह आतंकी हमला इसी
निराशा और हताशा का परिणाम हो या न हो किन्तु यह हमला पुतिन के विश्वास और
स्वाभिमान पर अवश्य है. इस आतंकी हमले के बाद रूस आक्रामक मुद्रा में है और
अमेरिका द्वारा यूक्रेन को बेगुनाह बताते हुए क्लीन चिट दी जा रही है. विश्व की इन
दो महाशक्तियों द्वारा उठाये जा रहे कदमों, बयानों का अंतिम निष्कर्ष क्या निकलेगा ये तो भविष्य के गर्भ
में छिपा है किन्तु इस आतंकी घटना ने एक तरह का वैश्विक भय अवश्य पैदा कर दिया है.
इस आतंकी हमले ने विश्व की दो महाशक्तियों के बीच खतरनाक संघर्ष के शुरू होने का
बीज बो दिया है.